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संत कबीर दास जी के दोहे

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दुःख में सुमिरन सब करे

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ॥

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    बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।
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    काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
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    जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं । प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ॥
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    ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
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    चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये । दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ॥

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