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माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ॥
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ॥
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ॥
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय |
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ||