करता रहे सो होत है, करता नहीं कुछ आप।
कर का करवा कर लिया, कहे कबीर चित चाप॥
कर का करवा कर लिया, कहे कबीर चित चाप॥
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, जो कुछ भी हो रहा है, वह उस परमकर्ता (परमपिता परमात्मा) की इच्छा से ही हो रहा है। हम अपने आप कुछ नहीं करते। वह परमात्मा ही अपने हाथों से हमसे वह करवा रहा है, जो उसकी योजना में है। यह समझ आने के बाद मेरा मन शांत हो गया है। हम सोचते हैं कि "मैंने किया", "मैं कर रहा हूँ", लेकिन वास्तविकता में सबकुछ परमात्मा की इच्छा और उसकी प्रेरणा से ही होता है। जब यह सत्य अनुभूत हो जाता है, तो उस व्यक्ति का चित्त शांत हो जाता है - चिंता, दुख, घमंड, सब मिट जाते हैं। जो अपने जीवन की लगाम को ईश्वर के हाथों में सौंप देता है, वही शांति को पाता है।
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