पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया


पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट ।
कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट ॥
भावार्थ: ज्ञान से बड़ा प्रेम होता है, बहुत ज्ञान हासिल करने के पश्चात यदि मनुष्य पत्थर सा कठोर हो जाए (ईंट जैसा निर्जीव हो जाए) तो क्या लाभ ? अर्थात यदि ज्ञान मनुष्य को रूखा और कठोर बनाता है तो ऐसे ज्ञान का कोई लाभ नहीं | जिस मानव मन को प्रेम ने नहीं छुआ, वह प्रेम के अभाव में निर्जीव ही माना जायेगा, प्रेम की एक बूँद ही बहुत है, किसी भी मनुष्य को सजीव बनाने के लिए |

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