पतिबरता मैली भली, गले कांच की पोत ।
सब सखियाँ में यों दिपै, ज्यों सूरज की जोत ॥
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, पतिव्रता स्त्री यदि तन से मैली भी हो, तो भी ही अच्छी है| चाहे उसके गले में केवल कांच के मोती की माला ही क्यों न हो| तब भी वह अपनी सब सखियों के बीच सूर्य के तेज के समान चमकती है |
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