माटी कहे कुमार से

Maati Kahe Kumhar Se

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ॥

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, मनुष्य को कभी किसी भी प्रकार का अभिमान नही करना चाहिये, क्योकि इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं हैं, एक न एक दिन वो भी टूट ही जाता हैं | समय सबसे बलवान होता हैं और समयानुसार ही काल का पहिया चलता हैं | माटी और कुम्हार की काल्पनिक वार्ता का वर्णन करते हुए कबीर जी कहते हैं कि जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को रौंदता हैं उसे अपनी इच्छानुसार आकार देता हैं, उसी प्रकार यह अवसर एक दिन मिट्टी को भी मिलेगा | जब जीवन के पश्चात कुम्हार का मृत शरीर मिट्टी में ही मिल जाएगा और तब मिटटी उसे अपने अनुसार आकार-निराकार करेगी | उस दिन मिट्टी कुम्हार को रौंदेगी, इस संसार में सभी प्राणियों को समय आने पर उनका अवसर अवश्य मिलता है |

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