Skip to content
कबीर हमारा कोई नहीं, हम काहू के नाहिं ।
पारै पहुंचे नाव ज्यौं, मिलिके बिछुरी जाहिं ॥
देह धरे का दंड है, सब काहू को होय ।
ज्ञानी भुगते ज्ञान से, अज्ञानी भुगते रोय॥
हीरा परखे जौहरी, शब्दहि परखे साध ।
कबीर परखे साध को, ताका मता अगाध ॥
एक ही बार परखिये, ना वा बारम्बार ।
बालू तो हू किरकिरी, जो छानै सौ बार ॥
पतिबरता मैली भली, गले कांच की पोत ।
सब सखियाँ में यों दिपै, ज्यों सूरज की जोत ॥
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।